गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) को जुलाई 2017 में लागू किया गया और यह हमारी अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में गेम-चेंजर साबित हुआ। जिसमें रियल एस्टेट महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है। वैट, सेवा कर और अन्य जैसे कई करों को दूर करने के साथ इसने वास्तव में एक सरलीकृत और मजबूत कर प्रणाली के निर्माण की प्रक्रिया बनाई है।
रियल एस्टेट भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है और इसका जीडीपी में 6-8% हिस्सा है। देश में जीएसटी के अमल के बाद, इस क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण बदलावों को देखने मिला है।
रियल एस्टेट बाजार के कुछ बहुत प्रतिस्पर्धी जैसे की किराये के बाजारों में निवेश में तेजी देखी गई जबकि अन्य क्षेत्रों में निवेश की प्रक्रिया स्थिर हैं। रियल एस्टेट पर जीएसटी का प्रभाव अभूतपूर्व रहा है।
रियल एस्टेट, जिस पर 12% की दर से कर लगाया जाता था, अब इस पर 5% की दर से कर लगता है। रियल एस्टेट के दिग्गजों का मानना है कि विविध टैक्स को सिर्फ़ एक टैक्स में रूपांतरित करने की वजह से इस क्षेत्र को बढ़ावा देने और विकास को गति देने में मदद मिली है।
हालांकि स्टांप ड्यूटी और पंजीकरण शुल्क जैसे कर और निर्माण सामग्री को अलग हीं रखा गया हैं, फिर भी जीएसटी इस क्षेत्र में कुछ आकर्षक भत्तों के साथ कर लगा कर इस प्रणाली को लागू करने में मदद करता है। जिससे खासकर रेंटल मार्केट्स में और आवासीय उद्देश्यों के लिए किराए पर दी गई संपत्तियों के मामले में निवेश को बढ़ावा मिलता है।
रियल एस्टेट पर 2019 जीएसटी में परिवर्तन का असर :
फरवरी 2019 में, आवासीय संपत्तियों के लिए नई जीएसटी दरों को पेश किया गया था और यह अप्रैल 2019 में लागू हुआ। परिषद ने आईटीसी लाभ को समाप्त करके डेवलपर्स के लिए एक परिवर्तन योजना की पेशकश की। रियल एस्टेट सेक्टर में प्रचलित वर्तमान जीएसटी दरें नीचे दी गई है।
- निर्माणाधीन संपत्तियों पर जीएसटी – बिना आईटीसी लाभ के 5%
- किफायती घरों पर जीएसटी का (45 लाख रुपये के भीतर) – आईटीसी के बिना 1% लाभ
- वाणिज्यिक संपत्तियों पर जीएसटी 12% लाभ आईटीसी लाभ के साथ।
किफायती आवास के परिभाषा के साथ संपत्ति को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया था:
- दिल्ली एनसीआर, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद, बैंगलोर और मुंबई महानगर क्षेत्र (एमएमआर) सहित महानगरीय क्षेत्रों में 60 वर्ग मीटर से कम क्षेत्र की संपत्ति।
- छोटे शहरों और कस्बों में 90 वर्ग मीटर से कम क्षेत्र की संपत्ति।
- महानगरीय या गैर-महानगरीय क्षेत्रों में 45 लाख रुपये के भीतर की संपत्ति।
रियल एस्टेट मार्केट पर जीएसटी की प्रमुख असर :
निर्माणाधीन संपत्ति की तुलना में तैयार संपत्ति के प्रति लोगो की रूचि में लगातार वृद्धि हुई थी। क्योंकि तैयार संपत्तियों के प्रमाण पत्र को कर से पूरी तरह से छूट दी गई थी जबकि निर्माणाधीन संपत्ति को 5% कर सेगमेंट में रखा गया था।
- निर्माण के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्रियों से जुड़े अन्य करों की वजह से समग्र निर्माण की लागत में वृद्धि हुई और इसलिए, इस सेगमेंट में खरीदारों ने कम निवेश किया।
- एक अन्य पहलू जो खरीदारों के हित को प्रभावित करता था, वह थी अंडर-कंस्ट्रक्शन यूनिट्स से जुड़ी देरी और डेवलपर का इनसॉल्वेंसी ( दिवाला) के लिए फाइल करना।
- आईटीसी के लाभ को हटाने के साथ स्टैम्प ड्यूटी और पंजीकरण शुल्क को भी हटाने से संपत्ति की कीमत में महत्वपूर्ण बदलाव नहीं आए।
- जीएसटी और इसके संशोधनों के आने से रियल एस्टेट क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ी है।
- किफायती आवास और आर्थिक क्षेत्र के तहत जिन पर 1% जीएसटी लगाया गया है वह एक आकर्षक विकल्प बन गया।
- रेंटल मार्केट, रियल एस्टेट सेक्टर का सबसे अधिक लाभ वाला सेगमेंट बन गया है। किराये पर दी गई आवासीय संपत्तियों को जीएसटी से छूट दी गई है । साथ हीं एक सदस्य का रखरखाव खर्च 7500 रूपये से ज्यादा प्रति माह हो उस पर 18% जीएसटी लगाया गया है। जिसकी वजह से रियल एस्टेट रेंटल मार्केट को काफी लोकप्रियता मिली है।
- व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली किराये की संपत्तियों की सीमा 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख कर दी गई है जिससे प्रॉपर्टी मालिकों पर कर बोझ और कम हो गया है।
- सभी सकारात्मकताओं के बावजूद, कुछ चीज़े हैं जो अभी भी इस क्षेत्र में किए गए निवेश को रोकते हैं। जीएसटी की गणना की मुश्किल प्रक्रिया और स्टांप ड्यूटी और पंजीकरण शुल्क प्रक्रिया से जुड़ी उलझने जो ख़रीदार पर बोझ डालती है।
- रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म (आरसीएम) एक और पहलू है जहाँ जीएसटी की शुरूआत ने लोगों को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। इसके तहत, यदि GST के तहत पंजीकृत व्यक्ति उस व्यक्ति से माल या सेवाएँ प्राप्त करता है जो GST के तहत पंजीकृत नहीं है, तो उस लेन-देन के लिए सामान या सेवाएँ प्राप्त करने वाले व्यक्ति पर GST लगाया जाएगा।
माल और सेवाओं के मामले में, कानूनी सेवाओं की तरह, सरकार और अन्य से प्राप्त सेवाएँ जो की डेवलपर द्वारा प्राप्त किया जाता है, उसे उसके लिए जीएसटी का भुगतान करना होगा। डेवलपर जीएसटी के इनपुट क्रेडिट के खिलाफ आरसीएम के संबंध में पेऐबल टैक्स को समायोजित नहीं कर सकता है, इसके बजाय इसे नकद या बैंक में भुगतान करना होगा।
इस प्रकार से डेवलपर्स प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए है और निर्माणाधीन संपत्तियों में तत्काल निवेश के बजाय खरीदारों के लिए ‘वेट एंड वॉच’ परिस्थिति का निर्माण हुआ है।
जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, इससे निर्माणाधीन निवेशों की ओर आकर्षित होने के बजाय तैयार संपत्तियों के प्रति रुचि में वृद्धि हुई। आईटीसी की पारदर्शिता की अनुपस्थिति इस संबंध में एक महत्वपूर्ण प्रेरणा रही है। नए बदलावों से छोटे डेवलपर्स पर काफी बोझ पड़ा है और इससे इस क्षेत्र में किए गए समग्र निवेश में बाधा आई है।
निष्कर्ष :
कई लोग सोचते हैं कि जीएसटी की वजह से इस क्षेत्र पर एक असाधारण प्रभाव पड़ा है, जबकि कुछ का मानना है कि फायदा और नुकसान ने एक दूसरे को संतुलित किया है जिससे कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं हुआ है।
जबकि वास्तविक डेटा जो की रियल एस्टेट पर जीएसटी का प्रभाव वास्तविक समय के साथ सामने आ रहा है। कोई इस बात से इनकार नहीं कर सकता है कि समग्र कर प्रणाली के नए रूप ने इस क्षेत्र में कुछ सकारात्मक बदलाव लाए हैं जो कि विविध कर प्रणाली की वजह से काफी त्रस्त हुए थे।